हाए ये सादगी ओ पुरकारी
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद