अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
बादल आ के रो गए हाए ग़ज़ब
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़