फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
हो आशिक़ों में उस के तो आओ 'मीर'-साहिब
न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
'मीर' को ज़ोफ़ में मैं देख कहा कुछ कहिए
न समझा गया अब्र क्या देख कर