तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
फिर भी करते हैं 'मीर'-साहिब इश्क़
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले
हुआ है अहल-ए-मसाजिद पे काम अज़-बस तंग
यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे
हो आशिक़ों में उस के तो आओ 'मीर'-साहिब
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली