Heart Broken Poetry of Mirza Ghalib (page 2)
नाम | ग़ालिब |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
है तमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन
है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यूँ सही
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
बोसा कैसा यही ग़नीमत है
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता