पहले जो कहा अब भी वही कहते हैं 'मोहसिन'
इतना है ब-अंदाज़-ए-दिगर कहने लगे हैं
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1448) Peoples Rate This
ख़ंदा-ए-लब में निहाँ ज़ख़्म-ए-हुनर देखेगा कौन
लफ़्ज़ों के एहतियात ने मअ'नी बदल दिए
ता-देर हम ब-दीदा-ए-तर देखते रहे
वक़्त के तक़ाज़ों को इस तरह भी समझा कर
नैरंगी-ए-सियासत-ए-दौराँ तो देखिए
ये तय हुआ है कि क़ातिल को भी दुआ दीजे
मैं लफ़्ज़ों के असर का मो'जिज़ा हूँ
क्या ज़रूरी है अब ये बताना मिरा
ज़ाविया कोई मुक़र्रर नहीं होने पाता
बे-सबब लोग बदलते नहीं मस्कन अपना
जाहिल को अगर जेहल का इनआ'म दिया जाए
अभी कुछ और भी गर्द-ओ-ग़ुबार उभरेगा