वहाँ पहुँच नहीं सकतीं तुम्हारी ज़ुल्फ़ें भी
हमारे दस्त-ए-तलब की जहाँ रसाई है
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साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामने
सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़े
कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम
मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
ज़िंदा-ए-जावेद हैं मारा जिन्हें उस शोख़ ने
तारीफ़ रोज़ लेते हो अपने ग़ुरूर की
करता रहा लुग़ात की तहक़ीक़ उम्र भर
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना