Qita Poetry (page 33)

ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए

कश्मीरी लाल ज़ाकिर

ऐ गदागर ख़ुदा का नाम न ले

अब्दुल हमीद अदम

ऐ दोस्त न पूछ मुझ से क्या है

सूफ़ी तबस्सुम

ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के

नज़ीर बनारसी

अगर यूँही रहेगी हैरत-ए-इश्क़

जोशिश अज़ीमाबादी

अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को

आसिम पीरज़ादा

अगर मज़ार पे सूरज भी ला के रख दोगे

आमिर उस्मानी

अगर अपना कहा तुम आप ही समझे तो क्या समझे

ऐश देहलवी

अद्ल

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अदब में आ गए ख़म ठोंक शाएर

साग़र ख़य्यामी

अब्र में छुप गया है आधा चाँद

जाँ निसार अख़्तर

अभी से लुत्फ़-ओ-मुरव्वत का एहतिमाम न कर

साबिर दत्त

अभी पोशीदा हैं नज़रों से ख़ज़ाने कितने

अली सरदार जाफ़री

अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका

मख़दूम मुहिउद्दीन

अभी जवाँ है ग़म-ए-ज़िंदगी का हर लम्हा

अली सरदार जाफ़री

अभी ऐ दोस्त ज़ौक़-ए-शाएरी है वज्ह-ए-रुस्वाई

हबीब जालिब

अब मिरी हालत-ए-ग़मनाक पे कुढ़ना कैसा

अब्दुल हमीद अदम

अब मनाना उसे मुश्किल है कि ये आख़िरी पल

आबिद मलिक

अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच

गणेश बिहारी तर्ज़

अब किसी को भी नहीं हौसला-ए-तल्ख़ी-ए-जाम

अली सरदार जाफ़री

अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं

अख़्तर अंसारी

अब कहाँ है वो नश्तरों की बहार

आसिम पीरज़ादा

अब इश्क़ नहीं मुश्किल बस इतना समझ लीजे

साग़र ख़य्यामी

अब भी साज़ों के तार हिलते हैं

अब्दुल हमीद अदम

अब भी रातें मिरी महकती हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

अब भी इक लब में और तबस्सुम में

वसीम बरेलवी

आज़माइश है तिरी जुर्अत-ए-रिंदाना की

अली सरदार जाफ़री

आज़ादी-ए-अफ़्कार से है उन की तबाही

अल्लामा इक़बाल

आया था बज़्म-ए-शेर में अर्ज़-ए-हुनर को मैं

हफ़ीज़ जालंधरी

आतिश-ए-इश्क़ भड़क उट्ठी है पैमाने मैं

अख़लाक़ अहमद आहन

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