सरफ़राज़ ख़ालिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सरफ़राज़ ख़ालिद (page 2)
नाम | सरफ़राज़ ख़ालिद |
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अंग्रेज़ी नाम | Sarfraz Khalid |
जन्म स्थान | Delhi |
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे
अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
नज़्म
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो
हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई