वली उज़लत कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वली उज़लत (page 3)
नाम | वली उज़लत |
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अंग्रेज़ी नाम | Wali Uzlat |
जन्म की तारीख | 1692 |
मौत की तिथि | 1775 |
जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़
जब तन न रहा मेरा हूँ वासिल-ए-जानाना
जब से दिलबर ने आँख फेरा है
हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते
हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं
है उस की ज़ुल्फ़ से नित पंजा-ए-अदू गुस्ताख़
गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़
ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा
घर यार का हम से दूर पड़ा गई हम से राहत एक तरफ़
ग़ैर-ए-आह-ए-सर्द नहीं दाग़ों के जाने का इलाज
गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़
गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा
फ़स्ल-ए-गुल में नईं बघूले उठते वीरानों के बीच
दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब
दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को
बंदे हैं तेरी छब के मह से जमाल वाले
बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें
बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना
बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के
असीरी बे-मज़ा लगती है बिन-सय्याद क्या कीजे
अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया
ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू
ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
अगर मैं मोजज़े को ख़ाकसारी के अयाँ करता
अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता
आज दिल बे-क़रार है मेरा