असग़र गोंडवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का असग़र गोंडवी (page 2)
नाम | असग़र गोंडवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Asghar Gondvi |
जन्म की तारीख | 1884 |
मौत की तिथि | 1936 |
जन्म स्थान | Gonda |
क्या क्या हैं दर्द-ए-इश्क़ की फ़ित्ना-तराज़ियाँ
कुछ मिलते हैं अब पुख़्तगी-ए-इश्क़ के आसार
जीना भी आ गया मुझे मरना भी आ गया
इश्क़ की बेताबियों पर हुस्न को रहम आ गया
हम उस निगाह-ए-नाज़ को समझे थे नेश्तर
हर इक जगह तिरी बर्क़-ए-निगाह दौड़ गई
हल कर लिया मजाज़ हक़ीक़त के राज़ को
एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी
दास्ताँ उन की अदाओं की है रंगीं लेकिन
छुट जाए अगर दामन-ए-कौनैन तो क्या ग़म
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
बिस्तर-ए-ख़ाक पे बैठा हूँ न मस्ती है न होश
बे-महाबा हो अगर हुस्न तो वो बात कहाँ
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
'असग़र' से मिले लेकिन 'असग़र' को नहीं देखा
'असग़र' हरीम-ए-इश्क़ में हस्ती ही जुर्म है
'असग़र' ग़ज़ल में चाहिए वो मौज-ए-ज़िंदगी
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ
अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं
ऐ शैख़ वो बसीत हक़ीक़त है कुफ़्र की
आरिज़-ए-नाज़ुक पे उन के रंग सा कुछ आ गया
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
आलम से बे-ख़बर भी हूँ आलम में भी हूँ मैं
ज़ौक़-ए-सरमस्ती को महव-ए-रू-ए-जानाँ कर दिया
यूँ न मायूस हो ऐ शोरिश-ए-नाकाम अभी
ये नंग-ए-आशिक़ी है सूद ओ हासिल देखने वाले
ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ
ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए