Ghazals of Atiiqullah
नाम | अतीक़ुल्लाह |
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अंग्रेज़ी नाम | Atiiqullah |
जन्म की तारीख | 1941 |
जन्म स्थान | Delhi |
वो तवानाई कहाँ जो कल तलक आज़ा में थी
वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में
वो जो सर्फ़-ए-निगाह करता है
तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ
तेरा ही निशान-ए-पा रहा हूँ मैं
क़ल्ब-गह में ज़रा ज़रा सा कुछ
मुझ से बे-ज़ारो न यूँ संग से मारो मुझ को
मिरे सुपुर्द कहाँ वो ख़ज़ाना करता था
मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी
मैं जो ठहरा ठहरता चला जाऊँगा
मैं छुपा रहूँगा निगाह-ओ-ज़ख़्म की ओट में
क्या तुम ने कभी ज़िंदगी करते हुए देखा
कुछ और दिन अभी उस जा क़याम करना था
कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना था
कीसा-ए-दरवेश में जो भी है ज़र उतना ही है
ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए
कौन गुज़रा था मेहराब-ए-जाँ से अभी ख़ामुशी शोर भरता हुआ
जब भी तन्हाई के एहसास से घबराता हूँ
इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था
गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
फ़रार के लिए जब रास्ता नहीं होगा
एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था
दिल के नज़दीक तो साया भी नहीं है कोई
दे कर पिछली यादों का अम्बार मुझे
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
चलो सुरंग से पहले गुज़र के देखा जाए
बहुत दिनों में कहीं रास्ते बदलते थे
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था
अंधेरा मेरे बातिन में पड़ा था
आसमाँ का सितारा न महताब है