बिमल कृष्ण अश्क कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बिमल कृष्ण अश्क (page 1)
नाम | बिमल कृष्ण अश्क |
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अंग्रेज़ी नाम | Bimal Krishn Ashk |
जन्म की तारीख | 1924 |
मौत की तिथि | 1982 |
पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था
अब तक तो यही पता नहीं है
रोने वालों ने तिरे ग़म को सराहा ही नहीं
दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर
उसे छत पर खड़े देखा था मैं ने
तुम तो कुछ ऐसे भूल गए हो जैसे कभी वाक़िफ़ ही नहीं थे
सभी इंसाँ फ़रिश्ते हो गए हैं
पड़ने लगे जो ज़ोर हवस का तो क्या निगाह
मैं बंद कमरे की मजबूरियों में लेटा रहा
जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था
एक दुनिया ने तुझे देखा है लेकिन मैं ने
देखने निकला हूँ दुनिया को मगर क्या देखूँ
दायरा खींच के बैठा हूँ बड़ी मुद्दत से
बदन के लोच तक आज़ाद है वो
बदन ढाँपे हुए फिरता हूँ यानी
ऐसा हुआ कि घर से न निकला तमाम दिन
अब यही दुख है हमीं में थी कमी उस में न थी
अब के बसंत आई तो आँखें उजड़ गईं
वो: एक
प्यार है वो
नज़्म
नाम उस का
एआद-ए-हिकायतें
यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला
उन की गोद में सर रख कर जब आँसू आँसू रोया था
तुझ जैसा इक आँचल चाहूँ अपने जैसा दामन ढूँडूँ
मिरी भी मान मिरा अक्स मत दिखा मुझ को
किधर जाऊँ कहीं रस्ता नहीं है
कैसे कहें कि चार तरफ़ दायरा न था
जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे