Ghazal Poetry (page 9)
ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सुनते हैं जो हम दश्त में पानी की कहानी
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
रात गुज़री न कम सितारे हुए
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
किसी का ख़्वाब किसी का क़यास है दुनिया
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
हम जाना चाहते थे जिधर भी नहीं गए
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
हुई आग़ाज़ फूलों की कहानी
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
इक नफ़स नाबूद से बाहर ज़रा रहता हूँ मैं
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
अश्क गिरने की सदा आई है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
तेवर भी देख लीजिए पहले घटाओं के
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
फिर सर-ए-दार-ए-वफ़ा रस्म ये डाली जाए
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना से डर जाएँ
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद