ख्वाब Poetry (page 6)
तमाम फ़िक्र ज़माने की टाल देता है
इन्दिरा वर्मा
शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है
इन्दिरा वर्मा
मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे
इन्दिरा वर्मा
काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते
इन्दिरा वर्मा
कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम
इन्दिरा वर्मा
हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें
इन्दिरा वर्मा
दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है
इन्दिरा वर्मा
दिल से दिल का रिश्ता होगा
इंद्र सराज़ी
इंकिशाफ़
इनाम-उल-हक़ जावेद
लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक
इनाम-उल-हक़ जावेद
नींद से जागा हूँ तो बैठा सोचता हूँ
इनाम नदीम
ख़ामोश खड़ा हूँ मैं दर-ए-ख़्वाब से बाहर
इनाम नदीम
हम ठहरे रहेंगे किसी ताबीर को थामे
इनाम नदीम
ज़मीं बिछाई यहाँ आसमाँ बुलंद किया
इनाम नदीम
ये मंज़र बे-दर-ओ-दीवार होता
इनाम नदीम
पड़ता था इस ख़याल का साया यहीं कहीं
इनाम नदीम
कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने
इनाम नदीम
ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है
इनाम नदीम
जिस रोज़ तिरे हिज्र से फ़ुर्सत में रहूँगा
इनाम नदीम
हमें तो इंतिज़ारी और ही थी
इनाम नदीम
दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा
इनाम नदीम
आँख ने धोका खाया था या साया था
इनाम नदीम
उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ
इनाम कबीर
तसव्वुरात में वो ज़ूम कर रहा था मुझे
इनआम आज़मी
कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं
इनआम आज़मी
कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं
इनआम आज़मी
कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे
इनआम आज़मी
जो चला आता है ख़्वाबों की तरफ़-दारी को
इनआम आज़मी
हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें
इम्तियाज़ साग़र
अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा
इम्तियाज़ अहमद राही