Heart Broken Poetry (page 409)
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
आलोक श्रीवास्तव
वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है
आलोक श्रीवास्तव
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
आलोक श्रीवास्तव
तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
आलोक श्रीवास्तव
ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में
आलोक श्रीवास्तव
मंज़िल पे ध्यान हम ने ज़रा भी अगर दिया
आलोक श्रीवास्तव
किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
आलोक श्रीवास्तव
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
आलोक श्रीवास्तव
हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा
आलोक श्रीवास्तव
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
आलोक श्रीवास्तव
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
आलोक श्रीवास्तव
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
आले रज़ा रज़ा
बंदिशें इश्क़ में दुनिया से निराली देखें
आले रज़ा रज़ा
यही अच्छा है जो इस तरह मिटाए कोई
आले रज़ा रज़ा
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
आले रज़ा रज़ा
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
आले रज़ा रज़ा
हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
आले रज़ा रज़ा
ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
आल-ए-अहमद सूरूर
लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
आल-ए-अहमद सूरूर
जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
आल-ए-अहमद सूरूर
हम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास
आल-ए-अहमद सूरूर
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
आल-ए-अहमद सूरूर
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
आल-ए-अहमद सूरूर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
आल-ए-अहमद सूरूर