Sad Poetry (page 180)
हम बयाबानों में घूमे शहर की सड़कों पे टहले
बशीर मुंज़िर
होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं
बशीर मुंज़िर
हर रोज़ ही दिन भर के झमेलों से निमट के
बशीर मुंज़िर
हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल
बशीर मुंज़िर
दम-ब-ख़ुद है चाँदनी चुप-चाप हैं अश्जार भी
बशीर मुंज़िर
क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए
बशीर अहमद बशीर
कैसी कैसी थीं उन्ही गलियों में ज़ेबा सूरतें
बशीर अहमद बशीर
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
बशीर अहमद बशीर
इन चटख़्ते पत्थरों पर पाँव धरना ध्यान से
बशीर अहमद बशीर
हर गाम पे आवारगी-ओ-दर-ब-दरी में
बशीर अहमद बशीर
गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ
बशीर अहमद बशीर
इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया
बशीर अहमद बशीर
दूर तक चारों तरफ़ मेरे सिवा कोई न था
बशीर अहमद बशीर
ऐसा तह-ए-अफ़्लाक ख़राबा नहीं कोई
बशीर अहमद बशीर
बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया
बशर नवाज़
तो ऐसा क्यूँ नहीं करते
बशर नवाज़
पता नहीं वो कौन था
बशर नवाज़
मुझे कहना है
बशर नवाज़
मुझे जीना नहीं आता
बशर नवाज़
करोगे याद तो हर बात याद आएगी
बशर नवाज़
फ़ासला
बशर नवाज़
अज़ल-ता-अबद
बशर नवाज़
अबदियत
बशर नवाज़
ये हुस्न है झरनों में न है बाद-ए-चमन में
बशर नवाज़
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो
बशर नवाज़
जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे
बशर नवाज़
जब छाई घटा लहराई धनक इक हुस्न-ए-मुकम्मल याद आया
बशर नवाज़
हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा
बशर नवाज़
दिल के हर दर्द ने अशआ'र में ढलना चाहा
बशर नवाज़
चुप-चाप सुलगता है दिया तुम भी तो देखो
बशर नवाज़