बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बरसात है दिल डस रहा है पानी
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान