साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
मुबहम पयाम