बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
मुबहम पयाम
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जाने वाले क़मर को रोके कोई
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान