आरज़ू लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आरज़ू लखनवी (page 3)

आरज़ू लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आरज़ू लखनवी (page 3)
नामआरज़ू लखनवी
अंग्रेज़ी नामArzoo Lakhnavi
जन्म की तारीख1873
मौत की तिथि1951
जन्म स्थानKarachi

हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें

हल्का था नदामत से सरमाया इबादत का

है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके

हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर

फ़ज़ा महदूद कब है ऐ दिल-ए-वहशी फ़लक कैसा

एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम

दोस्त ने दिल को तोड़ के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दिया

दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की

दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार

धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची

देखें महशर में उन से क्या ठहरे

दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है

चटकी जो कली कोयल कूकी उल्फ़त की कहानी ख़त्म हुई

बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से

भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं

भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो

बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा

अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी

अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें

अल्लाह अल्लाह हुस्न की ये पर्दा-दारी देखिए

'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी

आप अपने से बरहमी कैसी

यूँ दूर दूर दिल से हो हो के दिल-नशीं भी

ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से

यही इक निबाह की शक्ल है वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ

वो सर-ए-बाम कब नहीं आता

वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया

वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से

वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था

उस की तो एक दिल-लगी अपना बना के छोड़ दे

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