बशीर बद्र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बशीर बद्र (page 7)
नाम | बशीर बद्र |
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अंग्रेज़ी नाम | Bashir Badr |
जन्म की तारीख | 1935 |
जन्म स्थान | Bhopal |
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
न जी भर के देखा न कुछ बात की
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई
मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे
मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है
मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए
मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
कोई लश्कर कि धड़कते हुए ग़म आते हैं