बशीर बद्र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बशीर बद्र (page 4)
नाम | बशीर बद्र |
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अंग्रेज़ी नाम | Bashir Badr |
जन्म की तारीख | 1935 |
जन्म स्थान | Bhopal |
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
कोई बादल हो तो थम जाए मगर अश्क मिरे
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें
कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
जी बहुत चाहता है सच बोलें
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में