Ghazal Poetry (page 914)
क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा
आसी रामनगरी
मंज़िल पे ले के पहुँचेगा अज़्म-ए-जवाँ मुझे
आसी रामनगरी
मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम
आसी रामनगरी
लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है
आसी रामनगरी
क्या मसर्रत है पूछिए हम से
आसी रामनगरी
ख़्वाब में आओ मिरे रंगीन ख़्वाबों की तरह
आसी रामनगरी
हैं अहल-ए-चमन हैराँ ये कैसी बहार आई
आसी रामनगरी
ग़म को सबात है न ख़ुशी को क़रार है
आसी रामनगरी
दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है
आसी रामनगरी
दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है
आसी रामनगरी
दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए
आसी रामनगरी
धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो
आसी रामनगरी
बाब-ए-क़फ़स खुलने को खुला है
आसी रामनगरी
असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना
आसी रामनगरी
अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है
आसी रामनगरी
रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता
आसी करनाली
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है
आसी ग़ाज़ीपुरी
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
आसी ग़ाज़ीपुरी
तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना
आसी ग़ाज़ीपुरी
सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है
आसी ग़ाज़ीपुरी
रविश उस चाल में तलवार की है
आसी ग़ाज़ीपुरी
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
आसी ग़ाज़ीपुरी
फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
आसी ग़ाज़ीपुरी
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
आसी ग़ाज़ीपुरी
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
आसी ग़ाज़ीपुरी
कलेजा मुँह को आता है शब-ए-फ़ुर्क़त जब आती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
आसी ग़ाज़ीपुरी