आदा को उधर हराम का माल मिला
फिर चर्ख़ पर आसमान-ए-पीर आया है
अदना से जो सर झुकाए आला वो है
ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर
परवाने को धुन शम्अ को लौ तेरी है
हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए
इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठ्ठा
क्या क़ामत-ए-अहमद ने ज़िया पाई है
हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं