साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ज़ब्त-ए-गिर्या
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो