ऐ 'मुसहफ़ी' गावे ये ग़ज़ल मेरी जो राँझा
मानिंद-ए-परी उड़ने लगे हीर हवा पर
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(247) Peoples Rate This
कौन कहता है कि फिर ख़ाक से उठते हैं शहीद
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
कहते हो एक-आध की है मेरे हाथों मौत
तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी
गो मैं बुतों में उम्र को काटा तो क्या हुआ
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं
इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
चश्म-ए-लैला का जो आलम है उन्हों की चश्म में
धो डालिए ख़ून 'मुसहफ़ी' का
हम 'मुसहफ़ी' ब-कुफ़्र तो मशहूर हो चुके
तड़ावे के लिए है ख़्वान पोश महर-ओ-मह नादाँ