अब्दुल रहमान एहसान देहलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अब्दुल रहमान एहसान देहलवी (page 2)
नाम | अब्दुल रहमान एहसान देहलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Abdul Rahman Ehsan Dehlvi |
ग़ुंचा को मैं ने चूमा लाया दहन को आगे
गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है
गर है दुनिया की तलब ज़ाहिद-ए-मक्कार से मिल
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
फ़िलफ़िल-ए-ख़ाल-ए-मलाहत के तसव्वुर में तिरे
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
दिल-रुबा तुझ सा जो दिल लेने में अय्यारी करे
दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो
डर अपने पीर से बी पीर पीर पीर न कर
चश्म-ए-मस्त उस की याद आने लगी
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
अपनी ना-फ़हमी से मैं और न कुछ कर बैठूँ
अँधेरी रात को मैं रोज़-ए-इश्क़ समझा था
अनार-ए-ख़ुल्द को तू रख कि मैं पसंद नहीं
अगर बैठा ही नासेह मुँह को सी बैठ
आँखें मिरी फूटें तिरी आँखों के बग़ैर आह
आह-ए-पेचाँ अपनी ऐसी है कि जिस के पेच को
आग इस दिल-लगी को लग जाए
ज़ात उस की कोई अजब शय है
तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया
तीर पहलू में नहीं ऐ रुफ़क़ा-ए-पर्वाज़
सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले
सितम सा कोई सितम है तिरा पनाह तिरी
पूछी न ख़बर कभी हमारी
फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़
नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा
नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है
न अदा मुझ से हुआ उस सितम-ईजाद का हक़
म्याँ क्या हो गर अबरू-ए-ख़मदार को देखा