ग़ुलाम मौला क़लक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम मौला क़लक़ (page 4)
नाम | ग़ुलाम मौला क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Maula Qalaq |
मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता
मैं राज़दाँ हूँ ये कि जहाँ था वहाँ न था
क्यूँकर न आस्तीं में छुपा कर पढ़ें नमाज़
क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकाना
कुफ़्र और इस्लाम में देखा तो नाज़ुक फ़र्क़ था
किस लिए दावा-ए-ज़ुलेख़ाई
किधर क़फ़स था कहाँ हम थे किस तरफ़ ये क़ैद
ख़ुदा से डरते तो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न करते हम
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
कौन जाने था उस का नाम-ओ-नुमूद
जो कहता है वो करता है बर-अक्स उस के काम
जी है ये बिन लगे नहीं रहता
झगड़ा था जो दिल पे उस को छोड़ा
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
हम उस कूचे में उठने के लिए बैठे हैं मुद्दत से
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहने
गली से अपनी इरादा न कर उठाने का
फ़िक्र-ए-सितम में आप भी पाबंद हो गए
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत
बोसा देने की चीज़ है आख़िर
अश्क के गिरते ही आँखों में अंधेरा छा गया
अंदाज़ा आदमी का कहाँ गर न हो शराब
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम
आसमाँ अहल-ए-ज़मीं से क्या कुदूरत-नाक था
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही
वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है