सिराज लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सिराज लखनवी (page 2)

सिराज लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सिराज लखनवी (page 2)
नामसिराज लखनवी
अंग्रेज़ी नामSiraj Lakhnavi
जन्म की तारीख1894
मौत की तिथि1968

इश्क़ का बंदा भी हूँ काफ़िर भी हूँ मोमिन भी हूँ

इस सोच में बैठे हैं झुकाए हुए सर हम

इस दिल में तो ख़िज़ाँ की हवा तक नहीं लगी

हो गया आइना-ए-हाल भी गर्द-आलूदा

हर नफ़्स उतनी ही लौ देगा 'सिराज'

हर अश्क-ए-सुर्ख़ है दामान-ए-शब में आग का फूल

हाँ तुम को भूल जाने की कोशिश करेंगे हम

हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को

ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब

इक काफ़िर-ए-मुतलक़ है ज़ुल्मत की जवानी भी

एक एक से भीक आँसुओं की माँग रहा हूँ

दिया है दर्द तो रंग-ए-क़ुबूल दे ऐसा

दाम-बर-दोश फिरें चाहे वो गेसू बर-दोश

दम घुटा जाता है मोहब्बत का

चराग़ सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा

चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो

चमक शायद अभी गीती के ज़र्रों की नहीं देखी

बड़ों-बड़ों के क़दम डगमगाए जाते हैं

अभी रक्खा रहने दो ताक़ पर यूँही आफ़्ताब का आइना

आप के पाँव के नीचे दिल है

आँसू हैं कफ़न-पोश सितारे हैं कफ़न-रंग

आँखों पर अपनी रख कर साहिल की आस्तीं को

आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम

आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और

यौम-ए-आज़ादी

यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं

ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए

ये जब्र-ए-ज़िंदगी न उठाएँ तो क्या करें

ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

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