फ़िराक़ गोरखपुरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़िराक़ गोरखपुरी (page 5)
नाम | फ़िराक़ गोरखपुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Firaq Gorakhpuri |
जन्म की तारीख | 1896 |
मौत की तिथि | 1982 |
कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूम
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की
इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा
इस दौर में ज़िंदगी बशर की
इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
'ग़ालिब' ओ 'मीर' 'मुसहफ़ी'
'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में
फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात की
बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया