फ़िराक़ गोरखपुरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़िराक़ गोरखपुरी (page 2)
नाम | फ़िराक़ गोरखपुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Firaq Gorakhpuri |
जन्म की तारीख | 1896 |
मौत की तिथि | 1982 |
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे
करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए
कहती हैं यही तेरी निगाहें ऐ दोस्त
जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
जिस तरह रगों में ख़ून-ए-सालेह हो रवाँ
जिस तरह नद्दी में एक तारा लहराए
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
जब रात गए सुहाग करती है निगाह
जब किरनें हिमालिया की चोटी गूँधें
जब चाँद की वादियों से नग़्मे बरसें
'ईसा' के नफ़्स में भी ये एजाज़ नहीं
हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा
हर साँस में गुलज़ार से खिल जाते थे
हर जल्वे से इक दर्स-ए-नुमू लेता हूँ
गुल हैं कि रुख़-ए-गर्म के हैं अंगारे
ग़ुंचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
दोशीज़ा-ए-बहार मुस्कुराए जैसे
धीमा धीमा सा नूर जैसे तह-ए-साज़
चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है
बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
अमृत वो हलाहल को बना देती है
ऐ रूप की लक्ष्मी ये जल्वों का राग
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
अफ़्सुर्दा फ़ज़ा पे जैसे छाया हो हिरास
अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया
आवाज़ पे संगीत का होता है भरम
आँखों में वो रस जो पत्ती पत्ती धो जाए
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले