गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
अब वक़्त-ए-सुरूर- ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब आ पहुँचा
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है