मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 2)

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 2)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख

उस्ताद कोई ज़ोर मिला क़ैस को शायद

उस ने गाली मुझे दी हो के इताब-आलूदा

उस की पड़ी न आँख ख़त-ओ-ख़ाल पर तिरे

उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त

उस के लहराने में चाल आई न मुतलक़ साँप की

उस के कूचे में सदा मुझ को नज़र आता है

उस के कूचे में पुकारेगा अगर मुझ को रक़ीब

उस के दर पर मैं गया साँग बनाए तो कहा

उस के दहान-ए-तंग में जा-ए-सुख़न नहीं

उश्शाक़ का कुछ मैं ने आलम ही नया देखा

उस शाहिद-ए-निहाँ का कुश्ता हूँ मैं कि जिस ने

उस गुल का पता गर नहीं देते हो तो यारो

उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया

उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में

ऊधर गया तू ग़ुस्ल को हम्माम की तरफ़

तुम्हारे सामने क्या 'मुसहफ़ी' पढ़े अशआर

तुम्हारे हाथ को छोड़ूँ हूँ मैं कोई साहिब

तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है

तू ने मुँह फेरा और उस का नूर सा जाता रहा

तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी

तू मेरे दर्द से आगाह यूँ न होवेगा

तू खुले बालों मिरे सामने आया मत कर

तू जो जाता है वहीं नित दौड़ दौड़ ऐ 'मुसहफ़ी'

तू जिस के ख़्वाब में आया हो वक़्त-ए-सुब्ह सनम

तू हम-दमों से जुदा रह कि टूट जाता है

तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर

तू छोड़ अब तो असीर-ए-क़फ़स को ऐ सय्याद

तो माइल-ए-उश्शाक़-कुशी है तो यहाँ भी

तीरथ समझ उस को वो गर अश्नान को आवे

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