Qita Poetry (page 15)

मरक़द का शबिस्ताँ भी उसे रास न आया

अल्लामा इक़बाल

मरमरीं मरक़दों पे वक़्त-ए-सहर

अब्दुल हमीद अदम

मरीज़-ए-दिल

इनाम-उल-हक़ जावेद

मर जाए मौलवी तो फ़क़त होगी फ़ातिहा

आसिम पीरज़ादा

मर गया

अतहर शाह ख़ान जैदी

मक़्तल में न मस्जिद न ख़राबात में कोई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मानिंद-ए-सहर सेहन-ए-गुलिस्ताँ में क़दम रख

अल्लामा इक़बाल

मंदिरों, मस्जिदों की दुनिया में

दिलावर सिंह

माँ की आग़ोश में हँसता हुआ इक तिफ़्ल-ए-जमील

अली सरदार जाफ़री

मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ?

अल्लामा इक़बाल

मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा

अंजुम रहबर

मैं ने सुनाया उस को जो उर्दू में हाल-ए-दिल

अज़ीज़ फ़ैसल

मैं ने पूछा ये एक शाएर से

साग़र ख़य्यामी

मैं ने माना तिरी मोहब्बत में

जाँ निसार अख़्तर

मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को

साग़र सिद्दीक़ी

मैं ने कहा गधे से मियाँ कुछ पढ़ो लिखो

आसिम पीरज़ादा

मैं ने इस दश्त की वुसअत में शबिस्ताँ पाए

अहमद नदीम क़ासमी

मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त

जौन एलिया

मैं ने देखा जब आदमी का लहू

प्रेम वारबर्टनी

मैं ने अपना ही भिगोया है अभी तो दामन

अली सरदार जाफ़री

मैं ज़बाँ रखते हुए ख़ामोश हूँ

अफ़ज़ल इलाहाबादी

मैं तो क्या मुझ को देखने वाला

नरेश कुमार शाद

मैं तो भूला नहीं तुम भूल गई हो मुझ को

अली सरदार जाफ़री

मैं रास्ते का बोझ हूँ मेरा न कर ख़याल

अब्दुल हमीद अदम

मैं न कहा करता था साक़ी तिश्ना-लबों की आह न ले

आमिर उस्मानी

मैं मोअल्लिम हूँ कि तदरीस है मेरा शेवा

मोहम्मद कलीम ज़िया

मैं कहा ख़ल्क़ तुम्हारी जो कमर कहती है

क़ाएम चाँदपुरी

मैं इस कहानी में तरमीम कर के लाया हूँ

आबिद मलिक

मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'

अफ़ज़ल इलाहाबादी

मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के

मीर तक़ी मीर

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