Sad Poetry (page 183)
मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत
बाक़ी अहमदपुरी
दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती
बाक़ी अहमदपुरी
इश्क़ ने मंसब लिखे जिस दिन मिरी तक़दीर में
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
है दिल में घर को शहर से सहरा में ले चलें
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
है दिल में घर को शहर से सहरा में ले चलें
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
इश्क़ में बू है किबरियाई की
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
हाँ मियाँ सच है तुम्हारी तो बला ही जाने
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शोर-ए-दरिया है कहानी मेरी
बाक़र नक़वी
कभी तो याद के गुल-दान में सजाऊँ उसे
बाक़र नक़वी
दवा बग़ैर कोई तिफ़्ल मर गया तो क्या हुआ
बाक़र नक़वी
ऐ कहकशाँ-नवाज़ मुक़द्दर उजाल दे
बाक़र नक़वी
मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है
बाक़र मेहदी
कभी तो भूल गए पी के नाम तक उन का
बाक़र मेहदी
जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
बाक़र मेहदी
इस तरह कुछ बदल गई है ज़मीं
बाक़र मेहदी