शाह नसीर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाह नसीर (page 2)

शाह नसीर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाह नसीर (page 2)
नामशाह नसीर
अंग्रेज़ी नामShah Naseer
जन्म की तारीख1756
मौत की तिथि1838
जन्म स्थानDelhi

'नसीर' अब हम को क्या है क़िस्सा-ए-कौनैन से मतलब

नहीं है फ़ुर्सत-ए-इक-दम प आह उस को नज़र

न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का

न हाथ रख मिरे सीने पे दिल नहीं इस में

मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर'

मेरे नाले के न क्यूँ हो चर्ख़-ए-अख़्ज़र ज़ेर-ए-पा

मता-ए-दिल बहुत अर्ज़ां है क्यूँ नहीं लेते

मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'

मैं उस की चश्म का बीमार-ए-ना-तवाँ हूँ तबीब

मय-कशी का है ये शौक़ उस को कि आईने में

ले गया दे एक बोसा अक़्ल ओ दीन ओ दिल वो शोख़

लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर

लगा न दिल को तू अपने किसी से देख 'नसीर'

लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में

लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का

क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा

क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद

कोई ये शैख़ से पूछे कि बंद कर आँखें

की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ

की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ

ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दूता में 'नसीर' पीटा कर

ख़याल-ए-नाफ़-ए-बुताँ से हो क्यूँ कि दिल जाँ-बर

कम नहीं है अफ़सर-शाही से कुछ ताज-ए-गदा

काबे से ग़रज़ उस को न बुत-ख़ाने से मतलब

जूँ मौज हाथ मारिए क्या बहर-ए-इश्क़ में

जा-ब-जा दश्त में ख़ेमे हैं बगूले के खड़े

जब कि ले ज़ुल्फ़ तिरी मुसहफ़-ए-रुख़ का बोसा

इसी मज़मून से मालूम उस की सर्द-मेहरी है

इश्क़ ही दोनों तरफ़ जल्वा-ए-दिलदार हुआ

हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह

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