वज़ीर अली सबा लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वज़ीर अली सबा लखनवी (page 2)
नाम | वज़ीर अली सबा लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Wazir Ali Saba Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1793 |
मौत की तिथि | 1855 |
जन्म स्थान | Lucknow |
इन की मिज़ा है काबा-ए-अबरू में मोतकिफ़
हम रिंद-ए-परेशाँ हैं माह-ए-रमज़ाँ है
हम भी ज़रूर कहते किसी काम के लिए
हुआ धूप में भी न कम हुस्न-ए-यार
हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-ए-नाक़ूस सुना
फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं
दोनों चश्मों से मरी अश्क बहा करते हैं
दिलों में गब्र-ओ-मुसलमाँ ज़रा ख़याल करें
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
देखिए आज वो तशरीफ़ कहाँ फ़रमाएँ
दश्त-ए-जुनूँ में आ गईं आँखें जो उन की याद
चश्म वा रह गई देखा जो तिलिस्मात-ए-जहाँ
चार उंसुर के सब तमाशे हैं
बोसा-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त दे के गुनहगार किया
बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन आसमान में
बात भी आप के आगे न ज़बाँ से निकली
ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती से जो दम घबराया
अहवाल-ए-मज़ाहिब से ये साबित हुआ हम को
अब तो साहब की हुई ख़ातिर जम्अ'
आशिक़ हैं हम को हर्फ़-ए-मोहब्बत से काम है
आप को ग़ैर बहुत देखते हैं
आप ही अपने ज़रा जौर-ओ-सितम को देखें
आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार
वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया
उन की रफ़्तार से दिल का अजब अहवाल हुआ
तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो
रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में
क़ब्र पर बाद-ए-फ़ना आइएगा
नफ़्स नमरूद है क्या होना है
महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं