Qita Poetry (page 4)
वर्ना मुझे भी झूटा समझते तमाम लोग
नियाज़ स्वाती
वक़्त की सई-ए-मुसलसल कारगर होती गई
असरार-उल-हक़ मजाज़
वक़्त के साथ लोग कहते थे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
वक़्त बर्बाद करती रहती हूँ
अंजुम रहबर
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
साबिर दत्त
वक़्फ़-ए-हिरमान-ओ-यास रहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-गुलज़ार कहूँ तो क्या हो
साहिर लुधियानवी
वैसे तो ज़िंदगी में कुछ भी न उस ने पाया
अतहर शाह ख़ान जैदी
वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े
साग़र सिद्दीक़ी
वही अस्ल-ए-मकान-ओ-ला-मकाँ है
अल्लामा इक़बाल
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
मीर तक़ी मीर
उठाते हैं मज़े जौर-ओ-सितम के
सूफ़ी तबस्सुम
उस को किरनों ने दी है ताबानी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
उस की मर्ज़ी से अलग मज़हब-ओ-ईक़ाँ कब तक
रज़ा बिजनौरी
उस की ख़ुश्बू से मोअ'त्तर है मिरी तन्हाई
अफ़ज़ल इलाहाबादी
उस के चेहरे का अक्स पड़ता है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
उस के और अपने दरमियान में अब
जौन एलिया
उस के आने की दुआ होती है दिन भर लेकिन
साइमा असमा
उसी अदा से उसी बाँकपन के साथ आओ
मख़दूम मुहिउद्दीन
यूज़ करते हैं मुसलसल मेक-अप का डब्बा रोज़ क्यूँ
अज्ञात
उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
अब्दुल हमीद अदम
उक़ाबी रूह
गुलज़ार बुख़ारी
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
अख़्तर अंसारी
उन को सज्दा कर लिया महबूब की तस्वीर जान
गणेश बिहारी तर्ज़
उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं
अली सरदार जाफ़री
उन के क्या रंग थे अब याद नहीं है मुझ को
अली सरदार जाफ़री
उन के बग़ैर फ़स्ल-ए-बहाराँ भी बर्गरीज़
अनवर मसूद
उन दिनों रस्म-ओ-रह-ए-शहर-ए-निगाराँ क्या है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
अख़्तर अंसारी
उलझे हुए साँसों की घुटन कैसे दिखाऊँ
आमिर उस्मानी