अहमद नदीम क़ासमी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद नदीम क़ासमी (page 2)
नाम | अहमद नदीम क़ासमी |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Nadeem Qasmi |
जन्म की तारीख | 1916 |
मौत की तिथि | 2006 |
जन्म स्थान | Lahore |
हिकमत-ए-अहल-ए-मदरसा का ग़ुरूर
गुलों में रंग तो था रंग में जलन तो न थी
गोरे हाथों में ये धानी चूड़ियों की आन-बान
गिरती हुई बूँदें हैं कि पारे की लकीरें
गली के मोड़ पे बच्चों के एक जमघट में
गाएँ डकराती हुई पगडंडियों पर आ गईं
दावर-ए-हश्र मुझे तेरी क़सम
बूढ़े माँ बाप बिलकते हुए घर को पलटे
बरस के छट गए बादल हवाएँ गाती हैं
बलाग़त का अलमिया
बाजरे की फ़स्ल से चिड़ियाँ उड़ाने के लिए
बात कहने का जो ढब हो तो हज़ारों बातें
अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लो
आँसुओं में भिगो के आँखों को
आँख खुल जाती है जब रात को सोते सोते
आज पनघट पे ये गाता हुआ कौन आ निकला
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
यकसाँ हैं फ़िराक़-ए-वस्ल दोनों
उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
उन का आना हश्र से कुछ कम न था
उम्र भर संग-ज़नी करते रहे अहल-ए-वतन
तुम मिरे इरादों के डोलते सितारों को
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
तू ने यूँ देखा है जैसे कभी देखा ही न था
सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग
सिर्फ़ इस शौक़ से पूछी हैं हज़ारों बातें
शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई
सारी दुनिया हमें पहचानती है
पा कर भी तो नींद उड़ गई थी
'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी