मोमिन ख़ाँ मोमिन कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मोमिन ख़ाँ मोमिन (page 2)
नाम | मोमिन ख़ाँ मोमिन |
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अंग्रेज़ी नाम | Momin Khan Momin |
जन्म की तारीख | 1800 |
मौत की तिथि | 1852 |
जन्म स्थान | Delhi |
मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में
कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
किसी का हुआ आज कल था किसी का
किस पे मरते हो आप पूछते हैं
कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ
हम समझते हैं आज़माने को
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
है कुछ तो बात 'मोमिन' जो छा गई ख़मोशी
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
गो कि हम सफ़्हा-ए-हस्ती पे थे एक हर्फ़-ए-ग़लत
गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
दुश्नाम-ए-यार तब्-ए-हज़ीं पर गिराँ नहीं
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
धो दिया अश्क-ए-नदामत ने गुनाहों को मिरे
डरता हूँ आसमान से बिजली न गिर पड़े
चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'
चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था