अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा (page 2)
नाम | अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा |
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अंग्रेज़ी नाम | Aziz Bano Darab Wafa |
जन्म की तारीख | 1926 |
मौत की तिथि | 2005 |
जन्म स्थान | Lucknow |
मर के ख़ुद में दफ़्न हो जाऊँगी मैं भी एक दिन
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त
मैं उस की धूप हूँ जो मेरा आफ़्ताब नहीं
मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को
मैं शाख़-ए-सब्ज़ हूँ मुझ को उतार काग़ज़ पर
मैं रौशनी हूँ तो मेरी पहुँच कहाँ तक है
मैं फूट फूट के रोई मगर मिरे अंदर
मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ
मैं किस ज़बान में उस को कहाँ तलाश करूँ
मैं जब भी उस की उदासी से ऊब जाऊँगी
मैं भी साहिल की तरह टूट के बह जाती हूँ
मैं अपने जिस्म में रहती हूँ इस तकल्लुफ़ से
मैं अपने आप से टकरा गई थी ख़ैर हुई
लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से
कुरेदता है बहुत राख मेरे माज़ी की
कोई मौसम मेरी उम्मीदों को रास आया नहीं
किसी जनम में जो मेरा निशाँ मिला था उसे
ख़्वाब दरवाज़ों से दाख़िल नहीं होते लेकिन
कहने वाला ख़ुद तो सर तकिए पे रख कर सो गया
जिन को दीवार-ओ-दर भी ढक न सके
जब किसी रात कभी बैठ के मय-ख़ाने में
जाने कितने राज़ खुलें जिस दिन चेहरों की राख धुले
इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की
हम से ज़ियादा कौन समझता है ग़म की गहराई को
हम ने सारा जीवन बाँटी प्यार की दौलत लोगों में
हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल
हम मता-ए-दिल-ओ-जाँ ले के भला क्या जाएँ
हम हैं एहसास के सैलाब-ज़दा साहिल पर
हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे
हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में