Couplets Poetry (page 314)
लब पे कुछ बात आई जाती है
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
क्या कहूँ तुझ से मोहब्बत वो बला है हमदम
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
किस क़दर मो'तक़िद-ए-हुस्न-ए-मुकाफ़ात हूँ मैं
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
हम को भी क्या क्या मज़े की दास्तानें याद थीं
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
हँस के कहता है मुसव्विर से वो ग़ारत-गर-ए-होश
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
हम-नशीं देखी नहूसत दास्तान-ए-हिज्र की
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
है यक़ीं वो न आएँगे फिर भी
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
दुबकी हुई थी गुरबा-सिफ़त ख़्वाहिश-ए-गुनाह
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
दिल लगाने को न समझो दिल-लगी
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
देखा है मुझे अपनी ख़ुशामद में जो मसरूफ़
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
बुत-परस्ती में न होगा कोई मुझ सा बदनाम
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
बा'द तौबा के भी है दिल में ये हसरत बाक़ी
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
ज़िंदगी चुभ रही है काँटा सी
मिर्ज़ा अज़फ़री
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
मिर्ज़ा अज़फ़री
वो उठा कर यक क़दम आया न गाह
मिर्ज़ा अज़फ़री
तुझ बिन और हम को सूझता ही नहीं
मिर्ज़ा अज़फ़री
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
मिर्ज़ा अज़फ़री
सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
मिर्ज़ा अज़फ़री
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
मिर्ज़ा अज़फ़री
रफ़ू जेब-ए-मजनूँ हुआ कब ऐ नासेह
मिर्ज़ा अज़फ़री
क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
मिर्ज़ा अज़फ़री
ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
मिर्ज़ा अज़फ़री
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
मिर्ज़ा अज़फ़री
किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
मिर्ज़ा अज़फ़री
कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा
मिर्ज़ा अज़फ़री
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
मिर्ज़ा अज़फ़री
जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
मिर्ज़ा अज़फ़री
जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
मिर्ज़ा अज़फ़री
हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
मिर्ज़ा अज़फ़री