Couplets Poetry (page 316)

ग़म-ए-हयात ने बख़्शे हैं सारे सन्नाटे

इरफ़ान अहमद

अकेले पार उतर के बहुत है रंज मुझे

इरफ़ान अहमद

तमाम मसअले नौइयत-ए-सवाल के हैं

इक़तिदार जावेद

तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था

इक़बाल उमर

वो शबनम का सुकूँ हो या कि परवाने की बेताबी

इक़बाल सुहैल

न रहा कोई तार दामन में

इक़बाल सुहैल

कुछ ऐसा है फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना बरसों से

इक़बाल सुहैल

ख़ाकिस्तर-ए-दिल में तो न था एक शरर भी

इक़बाल सुहैल

जो तसव्वुर से मावरा न हुआ

इक़बाल सुहैल

हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से

इक़बाल सुहैल

आशोब-ए-इज़्तिराब में खटका जो है तो ये

इक़बाल सुहैल

ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था

इक़बाल साजिद

उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

सज़ा तो मिलना थी मुझ को बरहना लफ़्ज़ों की

इक़बाल साजिद

'साजिद' तू फिर से ख़ाना-ए-दिल में तलाश कर

इक़बाल साजिद

रोए हुए भी उन को कई साल हो गए

इक़बाल साजिद

प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर

इक़बाल साजिद

प्यार करने भी न पाया था कि रुस्वाई मिली

इक़बाल साजिद

पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँ

इक़बाल साजिद

पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी

इक़बाल साजिद

मुसलसल जागने के बाद ख़्वाहिश रूठ जाती है

इक़बाल साजिद

मुझ पे पत्थर फेंकने वालों को तेरे शहर में

इक़बाल साजिद

मोम की सीढ़ी पे चढ़ कर छू रहे थे आफ़्ताब

इक़बाल साजिद

मिले मुझे भी अगर कोई शाम फ़ुर्सत की

इक़बाल साजिद

मिरे ही हर्फ़ दिखाते थे मेरी शक्ल मुझे

इक़बाल साजिद

मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन

इक़बाल साजिद

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