मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 18)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को
बद-गुमानी ने मुझे क्या क्या सताया क्या कहूँ
बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
बातों में लगाए ही मुझे रखता है ज़ालिम
बातें कई ज़बानी मैं ने कही हैं उस से
बाम-ए-फ़लक पे गर वो उड़ाता नहीं पतंग
बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
अव्वल-ए-उम्र में देखा उसे जिस ने ये कहा
अव्वल तो थोड़ी थोड़ी चाहत थी दरमियाँ में
औरों की तरफ़ तू देखता है
और सरगर्म किया तेरी कशिश ने मुझ को
अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत
अपनी तो इस चमन में नित उम्र यूँही गुज़री
अपनी ग़रज़ को आए थे वो रात 'मुस्हफ़ी'
अपना तो तूल-ए-उम्र से घबरा गया है जी
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
अल्लाह-रे तेरे सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ की कशिश
अल्लाह-रे काफ़िरी तिरे तर्ज़-ए-ख़िराम की
अक्स से अपने अगर राह नहीं तुम को तो जान
ऐसी आज़ुर्दगी क्या थी हमें इस कूचे से
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले
ऐ 'मुसहफ़ी' उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई
ऐ 'मुसहफ़ी' उसे भी रखता है शाद जी में
ऐ 'मुसहफ़ी' तुर्बत का मिरी नाम न लेना
ऐ 'मुसहफ़ी' तू इन से मोहब्बत न कीजियो
ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा
ऐ 'मुसहफ़ी' शायर नहीं पूरब में हुआ मैं