अली सरदार जाफ़री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अली सरदार जाफ़री (page 2)
नाम | अली सरदार जाफ़री |
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अंग्रेज़ी नाम | Ali Sardar Jafri |
जन्म की तारीख | 1913 |
मौत की तिथि | 2000 |
जन्म स्थान | Mumbai |
किस क़दर नूर-ए-सहर देख के शरमाते हैं
कहीं दरिया कहीं वादी कहीं कोहसार बनी
कभी पहलू में समुंदर के तड़प उठती हैं
जिस तरह ख़्वाब के हल्के से धुँदलके में कोई
जज़्बा-ए-शौक़ की तकमील नहीं हो सकती
जन्नत ओ कौसर ओ अफ़रिश्ता ओ हूर ओ जिब्रील
इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माया है इक दौलत है
हुस्न तेरा कभी गुल और कभी माहताब हुआ
हुस्न ही हुस्न है फ़ितरत के सनम-ख़ाने में
हवा-ए-सुब्ह-ए-मशरिक़ जाग उठी है
हर एक ख़ुशी दर्द के दामन में पली है
गो मिरे सर पे सियह रात की परछाईं है
गर्द-ए-नफ़रत से बचा लेता हूँ दामन अपना
गरचे है मुश्त-ए-ग़ुबार आदम ओ हव्वा का वजूद
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं
देखो तो तीरा-ओ-तारीक फ़ज़ा का आलम
छलकी साग़र में मय-ए-नाब गवारा बन कर
चश्म-ए-बीना में सितारों की हक़ीक़त क्या है
बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
अता हुई है मिरे दिल की सल्तनत तुझ को
अपने उड़ते हुए आँचल को न रह रह के सँभाल
अपने आ'साब के मारे हुए बेचारे अदीब
अभी पोशीदा हैं नज़रों से ख़ज़ाने कितने
अभी जवाँ है ग़म-ए-ज़िंदगी का हर लम्हा
अब किसी को भी नहीं हौसला-ए-तल्ख़ी-ए-जाम
आज़माइश है तिरी जुर्अत-ए-रिंदाना की
आदमी लाख हो मायूस मगर मिस्ल-ए-नसीम
आ तेरे होंट चूम लूँ ऐ मुज़्दा-ए-नजात
ये तेरा गुलिस्ताँ तेरा चमन कब मेरी नवा के क़ाबिल है
ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त