Coupletss of Muneer Shikohabadi (page 3)
नाम | मुनीर शिकोहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muneer Shikohabadi |
जन्म की तारीख | 1814 |
मौत की तिथि | 1880 |
जिस रोज़ मैं गिनता हूँ तिरे आने की घड़ियाँ
झूटी बातों की तजल्ली नज़र आए ऐसे
झूटी बातें मुझे याद आईं जो उस की शब-ए-हिज्र
जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
जब बढ़ गई उम्र घट गई ज़ीस्त
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
जान देता हूँ मगर आती नहीं
इन रोज़ों लुत्फ़-ए-हुस्न है आओ तो बात है
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
हो गया मामूर आलम जब किया दरबार-ए-आम
हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर
हाथ मिलवाते हो तरसाए गिलौरी के लिए
हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा' है
गर्मी-ए-हुस्न की मिदहत का सिला लेते हैं
गर्मी में तेरे कूचा-नशीनों के वास्ते
गालियाँ ज़ख़्म-ए-कुहन को देख कर देती हो क्यूँ
फ़र्ज़ है दरिया-दिलों पर ख़ाकसारों की मदद
एहसान नहीं ख़्वाब में आए जो मिरे पास
दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में
दीदार का मज़ा नहीं बाल अपने बाँध लो
देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से
दौलत के दाँत कुंद किए मेरे हिर्स ने
दश्त-ए-वहशत में नहीं मिलता है साया काँपता
दस बीस हर महीने में अबरू नज़र पड़े
दम भर रहे हबाब-ए-नमत काएनात में
चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
बोसे हैं बे-हिसाब हर दिन के
बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया