सालिम सलीम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सालिम सलीम (page 1)

सालिम सलीम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सालिम सलीम (page 1)
नामसालिम सलीम
अंग्रेज़ी नामSalim Saleem
जन्म की तारीख1985
जन्म स्थानDelhi

ज़िंदगी ने जो कहीं का नहीं रक्खा मुझ को

ये कैसी आग है मुझ में कि एक मुद्दत से

वो दूर था तो बहुत हसरतें थीं पाने की

तुम्हारी आग में ख़ुद को जलाया था जो इक शब

तमाम बिछड़े हुओं को मिलाओ आज की रात

न जाने कैसी गिरानी उठाए फिरता हूँ

मेरी मिट्टी में कोई आग सी लग जाती है

मैं घटता जा रहा हूँ अपने अंदर

मैं आप अपने अंधेरों में बैठ जाता हूँ

क्या हो गया कि बैठ गई ख़ाक भी मिरी

कितना मुश्किल हो गया हूँ हिज्र में उस के सो वो

जुज़ हमारे कौन आख़िर देखता इस काम को

जो एक दम में तमाम रूहों को ख़ाक कर दे

हिज्र के दिन तो हुए ख़त्म बड़ी धूम के साथ

इक बर्फ़ सी जमी रहे दीवार-ओ-बाम पर

चराग़-ए-इश्क़ बदन से लगा था कुछ ऐसा

बुझा रखे हैं ये किस ने सभी चराग़-ए-हवस

भरे बाज़ार में बैठा हूँ लिए जिंस-ए-वजूद

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे

अब इस के बाद कुछ भी नहीं इख़्तियार में

आ रहा होगा वो दामन से हवा बाँधे हुए

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

ज़माँ मकाँ से भी कुछ मावरा बनाने में

सुकूत-ए-अर्ज़-ओ-समा में ख़ूब इंतिशार देखूँ

पस-ए-निगाह कोई लौ भड़कती रहती है

नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ

न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है

मेरी अर्ज़ानी से मुझ को वो निकालेगा मगर

मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए

कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम

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