Couplets Poetry (page 614)

ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

कहा था तुम से कि ये रास्ता भी ठीक नहीं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता था

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हमें ख़बर थी ज़बाँ खोलते ही क्या होगा

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का

आशुफ़्ता चंगेज़ी

है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घर में और बहुत कुछ था

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घर की हद में सहरा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घर के अंदर जाने के

आशुफ़्ता चंगेज़ी

एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दरियाओं की नज़्र हुए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

अजीब ख़्वाब था ताबीर क्या हुई उस की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

'आशुफ़्ता' अब उस शख़्स से क्या ख़ाक निबाहें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आँख खुलते ही बस्तियाँ ताराज

आशुफ़्ता चंगेज़ी

देख दामन-गीर महशर में तिरे होवेंगे हम

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था

आनिस मुईन

ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा

आनिस मुईन

याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे

आनिस मुईन

वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था

आनिस मुईन

उतारा दिल के वरक़ पर तो कितना पछताया

आनिस मुईन

तुम्हारे नाम के नीचे खिंची हुई है लकीर

आनिस मुईन

था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली

आनिस मुईन

न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी

आनिस मुईन

न जाने बाहर भी कितने आसेब मुंतज़िर हों

आनिस मुईन

मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज

आनिस मुईन

मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में

आनिस मुईन

मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था

आनिस मुईन

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