Coupletss of Muztar Khairabadi (page 4)

Coupletss of Muztar Khairabadi (page 4)
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता

मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत

मेरे ग़ुबार की ये तअ'ल्ली तो देखिए

मिरे दल ने झटके उठाए हैं कितने ये तुम अपनी ज़ुल्फ़ों के बालों से पूछो

मेरे अश्कों की रवानी को रवानी तो कहो

मिरा रोना हँसी-ठट्ठा नहीं है

मेरा रंग रूप बिगड़ गया मिरा यार मुझ से बिछड़ गया

मेरा दिल-ए-'मुज़्तर' बुत-ए-काफ़िर से लगा है

मसीहा जा रहा है दौड़ कर आवाज़ दो 'मुज़्तर'

मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल

मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या

मैं मसीहा उसे समझता हूँ

मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में

लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में

लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो

क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में

कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे

कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को

कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ

कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है

किसी ने न देखा तिरे हुस्न को

किसी के तीर को छाती से हम लगाए रहे

किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद

किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद

किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए

किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो

ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़े

ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती

ख़ूब इस दिल पे तिरी आँख ने डोरे डाले

ख़िज़र भी आप पर आशिक़ हुए हैं

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